aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "आह-ए-ना-मुराद"
इस दौर-ए-ना-मुराद से ये तजरबा हुआदीवार गुफ़्तुगू के लिए बेहतरीन है
बात खोते जो इल्तिजा करतेऐ दिल-ए-ना-मुराद क्या करते
इंतिज़ाम-ए-रोज़-ए-इशरत और कर ऐ ना-मुरादईद आती ही रही माह-ए-सियाम आ ही गया
आह-ए-बे-असर निकली नाला ना-रसा निकलाइक ख़ुदा पे तकिया था वो भी आप का निकला
हो ज़ब्त-ए-नाला क्यूँकि दिल-ए-ना-तवाँ में आहआतिश कहीं छुपाए से छुपती है ख़स के बीच
हम को मिली है इश्क़ से इक आह-ए-सोज़-नाकवो भी उसी की गर्मी-ए-बाज़ार के लिए
ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारीइक ना-शुनीदा उफ़ हैं इक आह-ए-बे-असर हैं
अब आया ध्यान ऐ आराम-ए-जाँ इस ना-मुरादी मेंकफ़न देना तुम्हें भूले थे हम अस्बाब-ए-शादी में
आप हों हम हों मय-ए-नाब हो तन्हाई होदिल में रह रह के ये अरमान चले आते हैं
वहम-ओ-गुमाँ ने आस बँधाई तमाम रातआहट ख़िराम-ए-नाज़ की आई तमाम रात
'रियाज़' आने में है उन के अभी देरचलो हो आएँ मर्ग-ए-ना-गहाँ तक
जहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनामकुछ अहल-ए-शौक़ को दार-ओ-रसन से प्यार भी है
नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर हैये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे
दोस्त-दार-ए-दुश्मन है ए'तिमाद-ए-दिल मा'लूमआह बे-असर देखी नाला ना-रसा पाया
आप की याद आती रही रात भरचश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर
ना-मुरादी से मिरे दिल की ख़लिश कम न हुईतिश्नगी और बढ़ी हसरत-ए-नाकाम के बा'द
अश्कों के तसलसुल ने छुपाया तन-ए-उर्यांये आब-ए-रवाँ का है नया पैरहन अपना
रोने पे अगर आऊँ तो दरिया को डुबो दूँक़तरा कोई समझे न मिरे दीदा-ए-नम को
बस यही होगा कि दीवाना कहेंगे अहल-ए-बज़्मआप चुप क्यूँ हैं मिरी तर्ज़-ए-नवा ले लीजिए
मुनहसिर वक़्त-ए-मुक़र्रर पे मुलाक़ात हुईआज ये आप की जानिब से नई बात हुई
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