aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कशिश-ए-काफ़-ए-करम"
हाए ज़ंजीर-शिकन वो कशिश-ए-फ़स्ल-ए-बहारऔर ज़िंदाँ से निकलना तिरे दीवाने का
कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबाफिर वही हम वही अमीनाबाद
फ़रेब-ए-अब्र-ए-करम भी बड़ा सहारा हैबला से नख़्ल-ए-तमन्ना ख़िज़ाँ-रसीदा नहीं
मेरी जन्नत तिरी निगाह-ए-करममुझ से फिर जाए ये ख़ुदा न करे
ज़रा चश्म-ए-करम से देख लो तुमसहारा ढूँढता हूँ ज़िंदगी का
हो न हो नज़र-ए-करम लेकिन सनमअंजुमन में आप की हाज़िर तो हैं
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करेनियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे
तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइएबंदा-परवर जाइए अच्छा ख़फ़ा हो जाइए
इस पुर्सिश-ए-करम पे तो आँसू निकल पड़ेक्या तू वही ख़ुलूस सरापा है आज भी
शम्अ का शाना-ए-इक़बाल है तौफ़ीक़-ए-करमग़ुंचा गुल होते ही ख़ुद साहब-ए-ज़र होता है
शायद वो संग-दिल हो कभी माइल-ए-करमसूरत न दे यक़ीन की इस एहतिमाल को
मर गए प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करमबुझ गई बज़्म तो अब शम्अ जलाता क्या है
या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं परया प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे
हुस्न ने दस्त-ए-करम खींच लिया है क्या ख़ूबअब मुझे भी हवस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार नहीं
मुझ पे हो जाए तिरी चश्म-ए-करम गर पल भरफिर मैं ये दोनों जहाँ ''बात ज़रा सी'' लिक्खूँ
आमादा-ए-करम है ये किस की निगाह-ए-नाज़दिल शिकवा-ए-सितम से पशेमाँ है आज क्यों
दरेग़ चश्म-ए-करम से न रख कि ऐ ज़ालिमकरे है दिल को मिरे तेरी यक नज़र महज़ूज़
ये कैसी मौज-ए-करम थी निगाह-ए-साक़ी मेंकि उस के ब'अद से तूफ़ान-ए-तिश्नगी कम है
या हुस्न हुआ मजबूर-ए-करम या इश्क़ ने मंज़िल पाली हैवो ज़ुल्फ़ बिखेरे आए हैं इक वहशी के समझाने को
सब के लिए जहान में अब्र-ए-करम हैं वोचारों तरफ़ बरसते हैं इक बूँद इधर नहीं
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books