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शेर
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
शेर
सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था
अहमद सलमान
शेर
जबीं पर सादगी नीची निगाहें बात में नरमी
मुख़ातिब कौन कर सकता है तुम को लफ़्ज़-ए-क़ातिल से