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शेर
'मासूम' अजब है हाल-ए-चमन हर शोले का यहाँ बदला है चलन
शाख़ों को जलाया जाता है ताइर को सताया जाता है
मासूम शर्क़ी
शेर
ज़ाहिद का दिल न ख़ातिर-ए-मय-ख़्वार तोड़िए
सौ बार तो ये कीजिए सौ बार तोड़िए
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
इतना भी बार-ए-ख़ातिर-ए-गुलशन न हो कोई
टूटी वो शाख़ जिस पे मिरा आशियाना था
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को
सो मैं कुछ ग़म बरा-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब उठा लाई
हुमैरा राहत
शेर
किसी बेवफ़ा की ख़ातिर ये जुनूँ 'फ़राज़' कब तक
जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ
अहमद फ़राज़
शेर
मैं बज़्म में तेरी हूँ न होने के बराबर
इस पर भी तिरे ख़ातिर-ए-नाज़ुक पे गिराँ हूँ
इश्तियाक़ क़ुरैशी
शेर
भला वो ख़ातिर-ए-आज़ुर्दा की तस्कीन क्या जानें
जिन्हों ने ख़ुद-नुमाई ख़ुद-परस्ती ज़िंदगी भर की