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शेर
बज़्म-ए-अग़्यार में उस ने मुझे दरयाफ़्त किया
बा'द मुद्दत के उसे याद मिरी आई है
मोहम्मद विलायतुल्लाह
शेर
घर की वीरानी को क्या रोऊँ कि ये पहले सी
तंग इतना है कि गुंजाइश-ए-ता'मीर नहीं
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
सिलसिला गबरू मुसलमाँ की अदावत का मिटा
ऐ परी बे-पर्दा हो कर सुब्हा-ए-ज़ुन्नार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
गिला किस से करें अग़्यार-ए-दिल-आज़ार कितने हैं
हमें मालूम है अहबाब भी ग़म-ख़्वार कितने हैं