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शेर
गोश-ए-मुश्ताक़-ए-सदा-ए-नाला-ए-दिल अब कहाँ
शेर अगर दिल के लहू में डूब कर निकले तो क्या
ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब
शेर
पर्दा-ए-गोश-ए-असीराँ न हुई इक शब-ए-गर्म
पाँव किस मुर्दे का या-रब मिरी ज़ंजीर में था
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
शायद उसी का ज़िक्र हो यारो मैं इस लिए
सुनता हूँ गोश-ए-दिल से हर इक मर्द-ओ-ज़न की बात
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
तू गोश-ए-दिल से सुने उस को गर बत-ए-बे-मेहर
फ़साना तुर्फ़ा है और माजरा है ज़ोर मिरा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
सबक़ आ के गोर-ए-ग़रीबाँ से ले लो
ख़मोशी मुदर्रिस है इस अंजुमन में
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
शमएँ अफ़्सुर्दा जहाँ फूल हैं पज़मुर्दा जहाँ
दिल को उस गोर-ए-ग़रीबाँ में पुकारा होता