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शेर
परेशाँ हो के दिल तर्क-ए-तअल्लुक़ पर है आमादा
मोहब्बत में ये सूरत भी न रास आई तो क्या होगा
उनवान चिश्ती
शेर
रहने दे तकलीफ़-ए-तवज्जोह दिल को है आराम बहुत
हिज्र में तेरी याद बहुत है ग़म में तेरा नाम बहुत
उनवान चिश्ती
शेर
कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
शहर-ए-तमन्ना की गलियों में बरपा है कोहराम बहुत
उनवान चिश्ती
शेर
सुनती है रोज़ नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-आशिक़ाँ
वो ज़ुल्फ़ भी है सिलसिला-ए-अहल-ए-चिश्त में