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शेर
कच्ची दीवारें सदा-नोशी में कितनी ताक़ थीं
पत्थरों में चीख़ कर देखा तो अंदाज़ा हुआ
जमुना प्रसाद राही
शेर
जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे
हम ने भी अपने दिल में क्या क्या ख़याल बाँधे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
कौन है तुझ सा जो बाँटे मिरी दिन भर की थकन
मुज़्महिल रात है बिस्तर का बदन दुखता है
जमुना प्रसाद राही
शेर
रक़ीबान-ए-सियह-रू शहर-ए-देहली के मुसाहिब हैं
गंदा नाला भी जा कर मिल रहा है देख जमुना कूँ
अब्दुल वहाब यकरू
शेर
मैं लफ़्ज़-ए-ख़ाम हूँ कोई कि तर्जुमान-ए-ग़ज़ल
ये फ़ैसला किसी ताज़ा किताब पर ठहरा