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शेर
फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता
जहाँ बच्चे नहीं होते वो घर अच्छा नहीं लगता
अब्बास ताबिश
शेर
डर के किसी से छुप जाता है जैसे साँप ख़ज़ाने में
ज़र के ज़ोर से ज़िंदा हैं सब ख़ाक के इस वीराने में
मुनीर नियाज़ी
शेर
नई सहर के हसीन सूरज तुझे ग़रीबों से वास्ता क्या
जहाँ उजाला है सीम-ओ-ज़र का वहीं तिरी रौशनी मिलेगी
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
शेर
तन्हा उजाड़ बुर्जों में फिरता है तू 'मुनीर'
वो ज़र-फ़िशानियाँ तिरे रुख़ की किधर गईं
मुनीर नियाज़ी
शेर
चमक ज़र की उसे आख़िर मकान-ए-ख़ाक में लाई
बनाया साँप ने जिस्मों में घर आहिस्ता आहिस्ता
मुनीर नियाज़ी
शेर
ग़रीबी किस बला का नाम है उन की बला जाने
ख़ुदा है जिन की दौलत जिन का शेवा ज़र-परस्ती है
फ़ैज़ लुधियानवी
शेर
खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख
हम अहल-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत हैं दिल निकाल के रख
इफ़्तिख़ार आरिफ़
शेर
माल-ओ-ज़र की क़द्र क्या? ख़ून-ए-जिगर के सामने
अहल-ए-दुनिया हेच हैं अहल-ए-हुनर के सामने