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शेर
कुछ बदन के थे तक़ाज़े कुछ शरारत दिल की थी
आज लेकिन इश्क़ अपना जावेदाँ होने को था
अब्दुल मन्नान समदी
शेर
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना
मुझे तो होश दे इतना रहूँ मैं तुझ पे दीवाना