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शेर
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
तफ़्सीर क्या करें कि हवा तेज़ अब भी है
इक़बाल अशहर कुरैशी
शेर
तुम्हारे वाज़ में तासीर तो है हज़रत-ए-वाइज़
असर लेकिन निगाह-ए-नाज़ का भी कम नहीं होता
अकबर इलाहाबादी
शेर
हो गया ज़र्द पड़ी जिस पे हसीनों की नज़र
ये अजब गुल हैं कि तासीर-ए-ख़िज़ाँ रखते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
शेर
लिख के रख देता हूँ अल्फ़ाज़ सभी काग़ज़ पर
लफ़्ज़ ख़ुद बोल के तासीर बना लेते हैं