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शेर
शोख़ी-ए-हुस्न के नज़्ज़ारे की ताक़त है कहाँ
तिफ़्ल-ए-नादाँ हूँ मैं बिजली से दहल जाता हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तुम्हें समझाएँ तो क्या हम कि शैख़-ए-वक़्त हो माइल
तुम अपने आप को देखो और इक तिफ़्ल-ए-बरहमन को
मिर्ज़ा मायल देहलवी
शेर
हर शख़्स मो'तरिफ़ कि मुहिब्ब-ए-वतन हूँ मैं
फिर अदलिया ने क्यूँ सर-ए-मक़्तल किया मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
शेर
था मुक़द्दम इश्क़-ए-बुत इस्लाम पर तिफ़्ली में भी
या सनम कह कर पढ़ा मकतब में बिस्मिल्लाह को
रिन्द लखनवी
शेर
मक़्तल-ए-यार में टुक ले तो चलो ऐ यारो
वाँ हमें सर से गुज़र जाने का आहंग है आज