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शेर
पैग़ाम-ए-लुत्फ़-ए-ख़ास सुनाना बसंत का
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-आम बहाना बसंत का
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
तीन हिस्से हैं ज़मीं के ग़र्क़-ए-दरिया-ए-मुहीत
रुबअ मस्कों में कुछ आबादी है कुछ वीराना है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
आसाँ नहीं दरिया-ए-मोहब्बत से गुज़रना
याँ नूह की कश्ती को भी तूफ़ान का डर है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तह में दरिया-ए-मोहब्बत के थी क्या चीज़ 'अज़ीज़'
जो कोई डूब गया उस को उभरने न दिया
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
पीछे पड़ी हैं दिल के बे-तरह मेरी आँखें
क्या जाने क्या करेंगी दरिया-ए-ख़ूँ बहा कर