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शेर
होता है मुसाफ़िर को दो-राहे में तवक़्क़ुफ़
रह एक है उठ जाए जो शक दैर-ओ-हरम का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
महफूजुर्रहमान आदिल
शेर
वस्ल-ओ-हिज्राँ दो जो मंज़िल हैं ये राह-ए-इश्क़ में
दिल ग़रीब उन में ख़ुदा जाने कहाँ मारा गया
मीर तक़ी मीर
शेर
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझाएँगे क्या
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
उसी को हम समझ लेते हैं अपना सादगी देखो
जो अपने साथ राह-ए-शौक़ में दो गाम आता है
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
सुन्नी ओ शीआ के क़ज़िए में है हैराँ मिरी अक़्ल
नहीं हिलता ये अजब दर रह-ए-दीं पत्थर है