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शेर
शिकस्त ओ फ़त्ह मियाँ इत्तिफ़ाक़ है लेकिन
मुक़ाबला तो दिल-ए-ना-तवाँ ने ख़ूब किया
नवाब मोहम्मद यार ख़ाँ अमीर
शेर
अगर बख़्शे ज़हे क़िस्मत न बख़्शे तो शिकायत क्या
सर-ए-तस्लीम ख़म है जो मिज़ाज-ए-यार में आए
नवाब अली असग़र
शेर
ज़रा उन की शोख़ी तो देखना लिए ज़ुल्फ़-ए-ख़म-शुदा हाथ में
मेरे पास आए दबे दबे मुझे साँप कह के डरा दिया
नवाब सुल्तान जहाँ बेगम
शेर
नाख़ुदा मौजों की इस नर्म-ख़िरामी पे न जा
यही मौजें तो बदल जाती हैं तूफ़ानों में
सय्यद नवाब अफ़सर लखनवी
शेर
मैं ने कहा कि दावा-ए-उल्फ़त मगर ग़लत
कहने लगे कि हाँ ग़लत और किस क़दर ग़लत
नवाब मोहम्मद सुफ़ अली खाँ बहादुर
शेर
लिख कर जो मेरा नाम ज़मीं पर मिटा दिया
उन का था खेल ख़ाक में मुझ को मिला दिया
नवाब अख़्तर महल अख़्तर
शेर
जाने क्यूँ दोज़ख़ से बद-तर हो गए हालात आज
रश्क-ए-जन्नत कल तलक हिन्दोस्ताँ मेरा भी था
नवाब शाहाबादी
शेर
अल्लाह अल्लाह ये हंगामा-ए-पैकार-ए-हयात
अब वो आवाज़ भी देते हैं तो सुनते नहीं हम