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शेर
न मानूँगा नसीहत पर न सुनता मैं तो क्या करता
कि हर हर बात में नासेह तुम्हारा नाम लेता था
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
अहल-ए-नसीहत जितने हैं हाँ उन को समझा दें ये लोग
मैं तो हूँ समझा-समझाया मुझ को क्या समझाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दर्द-ए-सर है तेरी सब पंद-ओ-नसीहत नासेह
छोड़ दे मुझ को ख़ुदा पर न कर अब सर ख़ाली
मर्दान अली खां राना
शेर
फीकी है तेरी नसीहत साथ मेरे ग़ुल मचा
शोर से नासेह नमक आ जाएगा तक़रीर में