aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "निज़ाम"
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वोऔर ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथदेखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
है ख़ुशी इंतिज़ार की हर दममैं ये क्यूँ पूछूँ कब मिलेंगे आप
चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो लेकहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा
गली के मोड़ से घर तक अँधेरा क्यूँ है 'निज़ाम'चराग़ याद का उस ने बुझा दिया होगा
तेरे ही ग़म में मर गए सद-शुक्रआख़िर इक दिन तो हम को मरना था
अब तुम से क्या किसी से शिकायत नहीं मुझेतुम क्या बदल गए कि ज़माना बदल गया
अब आओ मिल के सो रहें तकरार हो चुकीआँखों में नींद भी है बहुत रात कम भी है
बोसा तो उस लब-ए-शीरीं से कहाँ मिलता हैगालियाँ भी मिलीं हम को तो मिलीं थोड़ी सी
कोई है मस्त कोई तिश्ना-काम है साक़ीये मय-कदे का तिरे क्या निज़ाम है साक़ी
मज़मून सूझते हैं हज़ारों नए नएक़ासिद ये ख़त नहीं मिरे ग़म की किताब है
गर कोई पूछे मुझे आप इसे जानते हैंहो के अंजान वो कहते हैं कहीं देखा है
तिरा निज़ाम है सिल दे ज़बान-ए-शायर कोये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए
कहीं उस बज़्म तक रसाई होफिर कोई देखे एहतिमाम मिरा
मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँवो जो एक रात को आसमाँ का निज़ाम दे मिरे हाथ में
तू अकेला है बंद है कमराअब तो चेहरा उतार कर रख दे
अब क्या मिलें किसी से कहाँ जाएँ हम 'निज़ाम'हम वो नहीं रहे वो मोहब्बत नहीं रही
अभी तो कहा ही नहीं मैं ने कुछअभी तुम जो आँखें चुराने लगे
उठता हूँ उस की बज़्म से जब हो के ना-उमीदफिर फिर के देखता हूँ कोई अब पुकार ले
सच है 'निज़ाम' याद भी उस को न होंगे हमपर क्या करें वो हम से भुलाया न जाएगा
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