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शेर
सिक्का अपना नहीं जमता है तुम्हारे दिल पर
नक़्श अग़्यार के किस तौर से जम जाते हैं
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
शेर
जम गए राह में हम नक़्श-ए-क़दम की सूरत
नक़्श-ए-पा राह दिखाते हैं कि वो आते हैं
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
शेर
रोज़ ही पीना रोज़ पिलाना रोज़ ग़मों से टकराना
इक दिन मय को भूल के आओ गंगा-जल की बात करें
विलास पंडित मुसाफ़िर
शेर
जुनूँ की चाक-ज़नी ने असर किया वाँ भी
जो ख़त में हाल लिखा था वो ख़त का हाल हुआ
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
शेर
महव-ए-लिक़ा जो हैं मलकूती-ख़िसाल हैं
बेदार हो के भी नज़र आते हैं ख़्वाब में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
शेर
उश्शाक़ जो तसव्वुर-ए-बर्ज़ख़ के हो गए
आती है दम-ब-दम ये उन्हीं को सदा-ए-क़ल्ब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
शेर
छू ले सबा जो आ के मिरे गुल-बदन के पाँव
क़ाएम न हों चमन में नसीम-ए-चमन के पाँव
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
शेर
जो दिन को निकलो तो ख़ुर्शीद गिर्द-ए-सर घूमे
चलो जो शब को तो क़दमों पे माहताब गिरे
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
शेर
मअ'नी-ए-रौशन जो हों तो सौ से बेहतर एक शेर
मतला-ए-ख़ुर्शीद काफ़ी है पए-दीवान-ए-सुब्ह