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शेर
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
दिल के टुकड़ों को बग़ल-गीर लिए फिरता हूँ
कुछ इलाज इस का भी ऐ शीशा-गिराँ है कि नहीं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
रात दिन यार बग़ल में हो तो घर बेहतर है
वर्ना इस घर के तो रहने से सफ़र बेहतर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
जो लड़खड़ाए क़दम मय-कदे में मस्तों के
बग़ल में हज़रत-ए-नासेह थे बढ़ के थाम लिया
मुबारक अज़ीमाबादी
शेर
क़यामत था सितम था क़हर था ख़ल्वत में ओ ज़ालिम
वो शरमा कर तिरा मेरी बग़ल में जल्वा-गर होना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
शेर
दिल था बग़ल में मुद्दई ख़ूब हुआ जो ग़म हुआ
जाने से उस की इन दिनों हम को बड़ा फ़राग़ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल
साहिब-ए-दिल की बग़ल में दिल इबादत-ख़ाना है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा
दिल ही दिया जो तुम को तो फिर और क्या रहा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
जा भिड़ाता है हमेशा मुझे ख़ूँ-ख़्वारों से
दिल बग़ल-बीच मिरा दुश्मन-ए-जाँ है गोया