aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बुलाना"
मैं अपने ग़म-ख़ाना-ए-जुनूँ मेंतुम्हें बुलाना भी जानता हूँ
अना रोके हुए है हम को वर्नातुम्हें वापस बुलाना चाहते हैं
आती कब है रोज़ बुलाना पड़ती हैनींद की ख़ातिर गोली खाना पड़ती है
वो ख़फ़ा हैं तो रहें हम को मनाना भी नहींउन को आना भी नहीं हम को बुलाना भी नहीं
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइएदिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदेंये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दियातुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखामुझे लोगों ने बुलाया मुझे छू कर देखा
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँखिलौने दे के बहलाया गया हूँ
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिएवो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
टूटे बुत मस्जिद बनी मिस्मार बुत-ख़ाना हुआजब तो इक सूरत भी थी अब साफ़ वीराना हुआ
बुलाऊँगा न मिलूँगा न ख़त लिखूँगा तुझेतिरी ख़ुशी के लिए ख़ुद को ये सज़ा दूँगा
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैंये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते
जाने कैसा रिश्ता है रहगुज़र का क़दमों सेथक के बैठ जाऊँ तो रास्ता बुलाता है
आवाज़ दे रहा था कोई मुझ को ख़्वाब मेंलेकिन ख़बर नहीं कि बुलाया कहाँ गया
उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहींरात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था
कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाएकुछ किया जाए चराग़ों को बुझाया जाए
कितने यार हैं फिर भी 'मुनीर' इस आबादी में अकेला हैअपने ही ग़म के नश्शे से अपना जी बहलाता है
अपने दिए को चाँद बताने के वास्तेबस्ती का हर चराग़ बुझाना पड़ा हमें
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस कोवही बादल था मिरी प्यास बुझाने वाला
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