aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मनके"
रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आएदर्द फूलों की तरह महके अगर तू आए
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलींफिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम
है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भीइक तुर्फ़ा तमाशा है 'हसरत' की तबीअत भी
एक ही तीर है तरकश में तो उजलत न करोऐसे मौक़े पे निशाना भी ग़लत लगता है
तेरे आने की जब ख़बर महकेतेरी ख़ुशबू से सारा घर महके
तुझ से बिछड़ूँ तो कोई फूल न महके मुझ मेंदेख क्या कर्ब है क्या ज़ात की सच्चाई है
ग़ैर को या रब वो क्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ी करेगर हया भी उस को आती है तो शरमा जाए है
ख़्वाहिश-ए-दीद पे इंकार से आते हैं मज़ेऐसे मौक़े पे तो पर्दा भी मज़ा देता है
तुझ से मिल कर सब से नाते तोड़ लिए थेहम ने बादल देख के मटके फोड़ लिए थे
मोअज़्ज़िन मर्हबा बर-वक़्त बोलातिरी आवाज़ मक्के और मदीने
कभी मौक़े पे काम आया करेगीकिसी के साथ रखिए दुश्मनी भी
अपने मौक़े पे हर इक बात भली होती हैशब-ए-फ़ुर्क़त में ये सदमे भी मज़ा देते हैं
बना कर मन को मनका और रग-ए-तन के तईं रिश्ताउठा कर संग से फिर हम ने चकनाचूर की तस्बीह
वो आप से रूठा नहीं मनने का 'नज़ीर' आहक्या देखे है चल पाँव पड़ और उस को मना ला
जितने थे तेरे महके हुए आँचलों के रंगसब तितलियों ने और धनक ने उड़ा लिए
मश्क़-ए-सुख़न में दिल भी हमेशा से है शरीकलेकिन है इस में काम ज़ियादा दिमाग़ का
साक़ी मिरा खिंचा था तो मैं ने मना लियाये किस तरह मने जो धरी है खिंची हुई
घटा ज़ोर मश्क़-ए-सुख़न बढ़ गईज़ईफ़ी ने मुझ को जवाँ कर दिया
तरफ़ा आलम है हमारा भी कि हर दम उस सेआफी हम मनते हैं और आफी ख़फ़ा होते हैं
खिले धान खिलखिला कर पड़े नद्दियों में नाकेघनी ख़ुशबुओं से महके मिरे देस के इलाक़े
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