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शेर
नहीं होती है राह-ए-इश्क़ में आसान मंज़िल
सफ़र में भी तो सदियों की मसाफ़त चाहिए है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
शेर
क़दम रक्खा जो राह-ए-इश्क़ में हम ने तो ये देखा
जहाँ में जितने रहज़न हैं इसी मंज़िल में रहते हैं
जलील मानिकपूरी
शेर
जनाब-ए-ख़िज़्र राह-ए-इश्क़ में लड़ने से क्या हासिल
मैं अपना रास्ता ले लूँ तुम अपना रास्ता ले लो
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
सब पे रौशन है कि राह-ए-इश्क़ में मानिंद-ए-शम्अ
पाँव पर से हम ने क़ुर्बां रफ़्ता रफ़्ता सर किया
शाह नसीर
शेर
ये क्यूँ कहते हो राह-ए-इश्क़ पर चलना है हम को
कहो कि ज़िंदगी से अब फ़राग़त चाहिए है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
शेर
वस्ल-ओ-हिज्राँ दो जो मंज़िल हैं ये राह-ए-इश्क़ में
दिल ग़रीब उन में ख़ुदा जाने कहाँ मारा गया
मीर तक़ी मीर
शेर
ऐ मुक़ल्लिद बुल-हवस हम से न कर दावा-ए-इश्क़
दाग़ लाला की तरह रखते हैं मादर-ज़ाद हम
इश्क़ औरंगाबादी
शेर
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़