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शेर
ये रोज़ ओ शब ये सुब्ह ओ शाम ये बस्ती ये वीराना
सभी बेदार हैं इंसाँ अगर बेदार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
शेर
याद करते हैं तुझे दैर-ओ-हरम में शब-ओ-रोज़
अहल-ए-तस्बीह जुदा साहिब-ए-ज़ुन्नार जुदा
मीर मोहम्मदी बेदार
शेर
बे-क़रारी थी सब उम्मीद-ए-मुलाक़ात के साथ
अब वो अगली सी दराज़ी शब-ए-हिज्राँ में नहीं