aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शहर-पनाह"
हम चटानें हैं कोई रेत के साहिल तो नहींशौक़ से शहर-पनाहों में लगा दो हम को
वो काफ़िर-निगाहें ख़ुदा की पनाहजिधर फिर गईं फ़ैसला हो गया
गर्मी सी ये गर्मी हैमाँग रहे हैं लोग पनाह
उस के शर से मैं सदा माँगता रहता हूँ पनाहइसी दुनिया से मोहब्बत भी बला की है मुझे
मिलती नहीं पनाह हमें जिस ज़मीन परइक हश्र उस ज़मीं पे उठा देना चाहिए
में अदम की पनाह-गाह में हूँछू भी सकती नहीं हयात मुझे
हमारे ख़ौफ़ की ख़ल्लाक़ियाँ ख़ुदा की पनाहवो बिजलियाँ हैं नज़र में जो आसमाँ में नहीं
तिरे सिवा भी कहीं थी पनाह भूल गएनिकल के हम तिरी महफ़िल से राह भूल गए
इक ख़ौफ़-ए-बे-पनाह है आँखों के आर-पारतारीकियों में डूबता लम्हा है सामने
ज़िंदगानी का लुत्फ़ तो 'अज़्मत'सिर्फ़ तूफ़ान की पनाह में है
जब अपनी सर-ज़मीन ने मुझ को न दी पनाहअंजान वादियों में उतरना पड़ा मुझे
'रासिख़' की फ़ाक़ा-मस्ती से अल्लाह की पनाहखाता है सूखे टुकड़े भिगो कर शराब में
मुर्दा पड़े थे लोग घरों की पनाह मेंदरिया वफ़ूर-ए-ग़ैज़ से बिफरा था चार सू
मैं तेरे होते हुए ग़ैर की पनाह में हूँमिरे हबीब ये तुझ पर 'अज़ाब है शायद
बच्चों को भूके पेट सुलाने के बाद हमकैसे ग़ज़ल के शे'र सुनाएँ जहाँ-पनाह
गँवाए बैठे हैं आँखों की रौशनी 'शाहिद'जहाँ-पनाह का इंसाफ़ देखने वाले
जब सामने नज़र के हो इक हुस्न-ए-बे-पनाहऐसे में ख़ुद को होश में रखना कमाल है
गुलशन में कौन बुलबुल-ए-नालाँ को दे पनाहगुलचीं ओ बाग़बाँ भी हैं सय्याद की तरफ़
तू भी रह रह के मुझ को याद करेमेरा भी दिल तिरी पनाह में है
ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गईलीजिए उन से रस्म-ओ-राह गई
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