aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शोबा"
शोला-ए-इश्क़ बुझाना भी नहीं चाहता हैवो मगर ख़ुद को जलाना भी नहीं चाहता है
शुक्र को शिकवा-ए-जफ़ा समझेक्या कहा मैं ने आप क्या समझे
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपकशोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
कितनी घटाएँ आईं बरस कर गुज़र गईंशोला हमारे दिल का बुझाया न जा सका
ईद को भी वो नहीं मिलते हैं मुझ से न मिलेंइक बरस दिन की मुलाक़ात है ये भी न सही
हर कूचा शो'ला-ज़ार है हर शहर क़त्ल-गाहयक-जेहती-ए-हयात के आदाब क्या हुए
उस ने अच्छा ही किया हाल न पूछा दिल काभड़क उठता तो ये शो'ला न दबाया जाता
इश्क़ से तो नहीं हूँ मैं वाक़िफ़दिल को शोला सा कुछ लिपटता है
उस के रुख़्सार पर कहाँ है ज़ुल्फ़शोला-ए-हुस्न का धुआँ है ज़ुल्फ़
हम कि शोला भी हैं और शबनम भीतू ने किस रंग में देखा हम को
दीवार-ओ-दर पे कृष्ण की लीला के नक़्श हैंमंदिर है ये तो 'कृष्ण' के दरबार की तरह
राख के ढेर पे क्या शोला-बयानी करतेएक क़िस्से की भला कितनी कहानी करते
एक शोला सा उठा था दिल मेंजाने किस की थी सदा याद नहीं
अहल-ए-दिल के दरमियाँ थे 'मीर' तुमअब सुख़न है शोबदा-कारों के बीच
आँख से क़त्ल करे लब से जलाए मुर्देशोबदा-बाज़ का अदना सा करिश्मा देखो
इश्क़ सर-ता-ब-क़दम आतिश-ए-सोज़ाँ है मगरउस में शोला न शरारा न धुआँ होता है
ख़मोश जलने का दिल के कोई गवाह नहींकि शो'ला सुर्ख़ नहीं है धुआँ स्याह नहीं
आतिश-ए-गुल कोई चिंगारी नहीं शो'ला नहींफूल खिलते हैं तो गुलशन मिरा जलता क्यूँ है
हवा सहला रही है उस के तन कोवो शोला अब शरारे दे रहा है
मिरे गुमाँ ने मिरे सब यक़ीं जला डालेज़रा सा शोला भरी बस्तियों को चाट गया
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