aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सत-जगों"
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसेतेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र'साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं
यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला हैज़मीं से आसमाँ का फ़ासला है
आँख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुईख़ुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई
उतरा था मेरी रूह के रौज़न से जो कभीघुट घुट के मेरे जिस्म में मरने लगा है वो
अपनी अम्मी को मोहब्बत से जो देखा मैं नेपूरी जन्नत मिरी आँखों में सिमट आई है
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली हैडाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है
ज़बान ओ दहन से जो खुलते नहीं हैंवो खुल जाते हैं राज़ अक्सर नज़र से
दैर ओ काबा से जो हो कर गुज़रेदोस्त की राहगुज़र याद आई
तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखामुझे लोगों ने बुलाया मुझे छू कर देखा
था हिना से जो शोख़ मेरा ख़ूँबोले ये लाल लाल है कुछ और
तिरे करम से जो दामन हमारे भर जाएँहसद की आग में जल जल के लोग मर जाएँ
अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस नेदेख ली शाम ने ताबिंदा सहर की सूरत
जागती आँख से जो ख़्वाब था देखा 'अनवर'उस की ताबीर मुझे दिल के जलाने से मिली
ग़ुरूर से जो ज़मीं पर क़दम नहीं रखतीये किस गली से नसीम-ए-बहार आती है
बचपन में शौक़ से जो घरौंदे बनाए थेइक हूक सी उठी उन्हें मिस्मार देख कर
दिल से जो बात निकलती है असर रखती हैपर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
पानी सा जो भर आया था आँखों मेंमिट्टी का एहसान भी तो हो सकता था
लर्ज़ां है किसी ख़ौफ़ से जो शाम का चेहराआँखों में कोई ख़्वाब पिरोने नहीं देता
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