aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सब्र-ए-समीम"
कहाँ से लाऊँ सब्र-ए-हज़रत-ए-अय्यूब ऐ साक़ीख़ुम आएगा सुराही आएगी तब जाम आएगा
ग़ुबार सा है सर-ए-शाख़-सार कहते हैंचला है क़ाफ़िला-ए-नौ-बहार कहते हैं
जिसे कभी सर-ए-मिंबर न कह सका वाइज़वो बात अहल-ए-जुनूँ ज़ेर-ए-दार कहते हैं
सो गया वक़्त की दहलीज़ पे सर रक्खे हुएमैं कहाँ तक सफ़र-ए-इश्क़ में तन्हा जाता
सैर-ए-दुनिया को जाते हो जाओहै कोई शहर मेरे दिल जैसा
इस एक बात से गुलचीं का दिल धड़कता हैकि हम सबा से हदीस-ए-बहार कहते हैं
शायद कि वो वाक़िफ़ नहीं आदाब-ए-सफ़र सेपानी में जो क़दमों के निशाँ ढूँड रहा था
मौत के बाद ज़ीस्त की बहस में मुब्तला थे लोगहम तो 'सहर' गुज़र गए तोहमत-ए-ज़िंदगी उठाए
वक़्त रुक रुक के जिन्हें देखता रहता है 'सलीम'ये कभी वक़्त की रफ़्तार हुआ करते थे
ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़अपने होने का पता काफ़ी है
छेड़ नाहक़ न ऐ नसीम-ए-बहारसैर-ए-गुल का यहाँ किसे है दिमाग़
जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकीतो फिर इस के मअ'नी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है
ये कौन निकल आया यहाँ सैर-ए-चमन कोशाख़ों से महकते हुए ज़ेवर निकल आए
बादशाहत के मज़े हैं ख़ाकसारी में 'सलीम'ये नज़ारा यार के कूचे में रह के देखना
'ग़ालिब'-ए-दाना से पूछो इश्क़ में पड़ कर सलीमएक माक़ूल आदमी कैसे निकम्मा हो गया
सैर-ए-गुलज़ार मुबारक हो सबा को हम तोएक परवाज़ न की थी कि गिरफ़्तार हुए
क़द सर्व चश्म नर्गिस रुख़ गुल दहान ग़ुंचाकरता हूँ देख तुम कूँ सैर-ए-चमन ममोला
सैर-ए-बहार-ए-बाग़ से हम को मुआ'फ़ कीजिएउस के ख़याल-ए-ज़ुल्फ़ से 'दर्द' किसे फ़राग़ है
कुछ इस क़दर नहीं सफ़र-ए-हस्ती-ओ-अदमगर पाँव उठाइए तो ये अर्सा है दो क़दम
दुनिया सबब-ए-शोरिश-ए-ग़म पूछ रही हैइक मोहर-ए-ख़मोशी है कि होंटों पे लगी है
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