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शेर
मुहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
सीधी है रह-ए-बुत-कदा एहसान ख़ुदा का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
हर इक से पूछते फिरते हैं तेरे ख़ाना-ब-दोश
अज़ाब-ए-दर-ब-दरी किस के घर में रक्खा जाए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
शेर
किस दर्जा मुनाफ़िक़ हैं सब अहल-ए-हवस 'साक़िब'
अंदर से तो पत्थर हैं और लगते हैं पानी से
आसिफ़ साक़िब
शेर
वो दर्द उठा दिल में कि जिस दर्द का दरमाँ
गर हो न पस-ए-लफ़्ज़ तो मिलता है सर-ए-दार