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शेर
तिरछी नज़रों से न देखो आशिक़-ए-दिल-गीर को
कैसे तीर-अंदाज़ हो सीधा तो कर लो तीर को
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
इन बुतों ने मुझ को बे-ख़ुद किस क़दर धोके दिए
सीधा-सादा जान कर मर्द-ए-मुसलमाँ देख कर
अब्बास अली ख़ान बेखुद
शेर
जी में आती है करूँ उन को मैं इक दिन सीधा
बाल ज़ुल्फ़ों के तिरी मुझ से कजी रखते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
अब वो नहीं है फिर भी दफ़्तर से सीधा घर आता हूँ
डर लगता है देर हुई तो माँ मुझ को फिर डाँटेगी
अमित गोस्वामी
शेर
ये रस्ता तो सीधा उस के घर तक जा कर रुकता है
ऐ मेरे आवारा क़दमो किस रुख़ पर ले आए तुम
फ़रहान हनीफ़ वारसी
शेर
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में