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शेर
तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद
या-रब मिरा हम-ख़्वाब ओ हम-आग़ोश कहाँ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
कुछ तो मिलता है मज़ा सा शब-ए-तन्हाई में
पर ये मालूम नहीं किस से हम-आग़ोश हूँ मैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तसव्वुर में तुझे ज़ौक़-ए-हम-आग़ोशी ने भींचा था
बहारें कट गई हैं आज तक पहलू महकता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
सुरूर-ए-जाँ-फ़ज़ा देती है आग़ोश-ए-वतन सब को
कि जैसे भी हों बच्चे माँ को प्यारे एक जैसे हैं
सरफ़राज़ शाहिद
शेर
ध्यान बाँधूँ हूँ जो मैं उस की हम-आग़ोशी का
देर तक रहती हैं मिज़्गाँ मिरी मिज़्गाँ से लिपट
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दर्द जब ज़ब्त की हर हद से गुज़र जाता है
ख़्वाब तन्हाई की आग़ोश में सो जाते हैं