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शेर
हर-दिल-अज़ीज़ वो भी है हम भी हैं ख़ुश-मिज़ाज
अब क्या बताएँ कैसे हमारी नहीं बनी
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
शेर
मोहब्बत लफ़्ज़ तो सादा सा है लेकिन 'अज़ीज़' इस को
मता-ए-दिल समझते थे मता-ए-दिल समझते हैं
अज़ीज़ वारसी
शेर
करता है लहू दिल को हर इक हर्फ़-ए-तसल्ली
कहने को तो यूँ क़ुर्बत-ए-ग़म-ख़्वार बहुत है
इरफ़ाना अज़ीज़
शेर
'अज़ीज़' मुँह से वो अपने नक़ाब तो उलटें
करेंगे जब्र अगर दिल पे इख़्तियार रहा
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
ख़ामा-ए-क़ुदरत ने दिल का नाम ये कह कर लिखा
हर जगह इस लफ़्ज़ के मअ'नी बदलते जाएँगे
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन ओ दिल अज़ीज़ उस की गली में जाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
सब की तक़रीरों में वैसे है ख़ुदा सब का ही इक
हाँ मगर हर दिल की अपनी मज़हबी पोशाक है
ए.आर.साहिल "अलीग"
शेर
शकील बदायूनी
शेर
जमील मज़हरी
शेर
है दिल में जोश-ए-हसरत रुकते नहीं हैं आँसू
रिसती हुई सुराही टूटा हुआ सुबू हूँ