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शेर
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
क्यूँ न मरक़द पर करे दूद-ए-चराग़-ए-शाम रक़्स
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
पहले मैं आता हूँ और बाद-ए-सबा मेरे बा'द
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
शेर
जो शब को ख़्वाब में आया वो चश्मा-ए-हैवाँ
बहाए चश्म ने रो रो के ख़्वाब में दरिया
डॉन डिसिल्वा फ़ितरत
शेर
मैं अपने वक़्त में अपनी रिदा में रहता हूँ
और अपने ख़्वाब की आब-ओ-हवा में रहता हूँ
अली अकबर अब्बास
शेर
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे
बशीर बद्र
शेर
ज़ाहिद का दिल न ख़ातिर-ए-मय-ख़्वार तोड़िए
सौ बार तो ये कीजिए सौ बार तोड़िए
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
किन गुज़रगाहों के हैं गर्द-ओ-ग़ुबार आँखों में
रोज़ पतझड़ के हमें ख़्वाब दिखाती है हवा