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शेर
मर चुका मैं तो नहीं इस से मुझे कुछ हासिल
बरसे गिर पानी की जा आब-ए-बक़ा मेरे बा'द
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
जान कर हम ने उन्हें ना-मेहरबाँ रहने दिया
अदीब सहारनपुरी
शेर
फ़िक्र-ए-मंज़िल है न होश-ए-जादा-ए-मंज़िल मुझे
जा रहा हूँ जिस तरफ़ ले जा रहा है दिल मुझे