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शेर
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
शेर
दुनिया की बहारों से आँखें यूँ फेर लीं जाने वालों ने
जैसे कोई लम्बे क़िस्से को पढ़ते पढ़ते उकता जाए
नुशूर वाहिदी
शेर
कितनी भी प्यारी हो हर इक शय से जी उक्ता जाता है
वक़्त के साथ तो चमकीले ज़ेवर भी काले पड़ जाते हैं
मुकेश आलम
शेर
किसी के अक़्द में रहती नहीं है लूली-ए-दहर
ये क़हबा रोज़-ए-अज़ल से है कुछ तलाक़-नसीब