aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".hia"
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आआ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाएअब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ताएक ही शख़्स था जहान में क्या
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूमकि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िलकोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
आप के बा'द हर घड़ी हम नेआप के साथ ही गुज़ारी है
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने हैजाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजेइक आग का दरिया है और डूब के जाना है
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सहीनहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगेअभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन कोक्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँकितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइलजब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक केअब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
उस गली ने ये सुन के सब्र कियाजाने वाले यहाँ के थे ही नहीं
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहींफ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआअब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रबक्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
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