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शेर
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
पैदा वो बात कर कि तुझे रोएँ दूसरे
रोना ख़ुद अपने हाल पे ये ज़ार ज़ार क्या
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
ज़बान दिल की हक़ीक़त को क्या बयाँ करती
किसी का हाल किसी से कहा नहीं जाता
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
लुत्फ़-ए-बहार कुछ नहीं गो है वही बहार
दिल ही उजड़ गया कि ज़माना उजड़ गया
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
हमेशा तिनके ही चुनते गुज़र गई अपनी
मगर चमन में कहीं आशियाँ बना न सके
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
बताओ ऐसे मरीज़ों का है इलाज कोई
कि जिन से हाल भी अपना बयाँ नहीं होता
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
आईना छोड़ के देखा किए सूरत मेरी
दिल-ए-मुज़्तर ने मिरे उन को सँवरने न दिया
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
ये तेरी आरज़ू में बढ़ी वुसअत-ए-नज़र
दुनिया है सब मिरी निगह-ए-इंतिज़ार में