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शेर
दिल में ख़ाक उड़ती है कहने को बड़े हैं ज़ाहिद
मक्र का विर्द है पढ़ते हैं रिया की तस्बीह
लाला माधव राम जौहर
शेर
तू अपने मन का मनका फेर ज़ाहिद वर्ना क्या हासिल
तुझे इस मक्र की तस्बीह से ज़ुन्नार बेहतर था