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शेर
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
तू हमेशा माँगता रहता है क्यूँ ग़म से नजात
ग़म नहीं होंगे तो क्या तेरी ख़ुशी बढ़ जाएगी
भारत भूषण पन्त
शेर
ज़हर पी कर भी यहाँ किस को मिली ग़म से नजात
ख़त्म होता है कहीं सिलसिला-ए-रक़्स-ए-हयात
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
आदमी को ग़फ़लत-ए-दुनिया नहीं देती नजात
सुब्ह जो चौंका हुआ मसरूफ़ इसी सामान में