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शेर
सूख गई जब आँखों में प्यार की नीली झील 'क़तील'
तेरे दर्द का ज़र्द समुंदर काहे शोर मचाएगा
क़तील शिफ़ाई
शेर
हो गया ज़र्द पड़ी जिस पे हसीनों की नज़र
ये अजब गुल हैं कि तासीर-ए-ख़िज़ाँ रखते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
शेर
ज़र्द चेहरों की किताबें भी हैं कितनी मक़्बूल
तर्जुमे उन के जहाँ भर की ज़बानों में मिले