aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "GauGaa"
रस्म इस घर की नहीं दाद किसू की दे कोईशोर-ओ-ग़ौग़ा न कर ऐ मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार अबस
सख़्त वहशत सी बरसती है शब-ओ-रोज़ यहाँअब तो ग़ौग़ा-ए-सगाँ तक में असर कोई नहीं
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों कीनहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिएइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
नाव न डूबी दरिया मेंनाव में दरिया डूब गया
नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़तये जहाँ अजब जहाँ है न क़फ़स न आशियाना
फूलों में वही तो फूल ठहराजो तेरे सलाम को खिला हो
लहजा तो बदल चुभती हुई बात से पहलेतीर ऐसा तो कुछ हो जिसे नख़चीर भी चाहे
आबरू शर्त है इंसाँ के लिए दुनिया मेंन रही आब जो बाक़ी तो है गौहर पत्थर
हमारा ख़ून का रिश्ता है सरहदों का नहींहमारे ख़ून में गँगा भी चनाब भी है
ख़ुश-नसीब आज भला कौन है गौहर के सिवासब कुछ अल्लाह ने दे रक्खा है शौहर के सिवा
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसेऔर इस दिल की तरफ़ बरसे तो पत्थर बरसे
इस पे हैराँ हैं ख़रीदार कि क़ीमत है बहुतमेरे गौहर की तब-ओ-ताब नहीं देखते हैं
हुस्न बना जब बहती गंगाइश्क़ हुआ काग़ज़ की नाव
चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँशहर का शहर हमारा तो नहीं हो सकता
हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकताएक ही इश्क़ दोबारा तो नहीं हो सकता
शो-केस में रक्खा हुआ औरत का जो बुत हैगूँगा ही सही फिर भी दिल-आवेज़ बहुत है
दुनिया की क्या चाह करेंदुनिया आनी-जानी है
एक परिंदा चीख़ रहा है मस्जिद के मीनारे परदूर कहीं गंगा के किनारे आस का सूरज ढलता है
अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन करऔर टूटे तो बिखर जाए नगीनों की तरह
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