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शेर
हक़ ये है कि का'बे की बिना भी न पड़ी थी
हैं जब से दर-ए-बुत-कदा पर ख़ाक-नशीं हम
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
अभी मस्जिद-नशीन-ए-तारुम-ए-अफ़्लाक हो जावे
जो सब कुछ छोड़ दिल तेरे क़दम की ख़ाक हो जावे