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शेर
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
गुज़रा है जो कुछ हम पर तुम ने भी सुना होगा
दिल शाहजहाँपुरी
शेर
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है कुछ इस का अंजाम
तुझ को मालूम है ऐ दीदा-ए-नम क्या होगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
आजिज़ मातवी
शेर
हाए उस दस्त-ए-करम ही से मिले जौर-ओ-जफ़ा
मुझ को आग़ाज़-ए-मोहब्बत ही में मर जाना था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
आले रज़ा रज़ा
शेर
किसी के संग-ए-दर से एक मुद्दत सर नहीं उट्ठा
मोहब्बत में अदा की हैं नमाज़ें बे-वुज़ू बरसों
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता