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शेर
मर चुका मैं तो नहीं इस से मुझे कुछ हासिल
बरसे गिर पानी की जा आब-ए-बक़ा मेरे बा'द
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
मुझे जब मार ही डाला तो अब दोनों बराबर हैं
उड़ाओ ख़ाक सरसर बन के या बाद-ए-सबा बन कर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
हम रू-ब-रू-ए-शम्अ हैं इस इंतिज़ार में
कुछ जाँ परों में आए तो उड़ कर निसार हों