aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aab-shaar-e-nidaa"
ऐ शब-ए-ग़म मिरे मुक़द्दर कीतेरे दामन में इक सहर होती
इन अंधेरों से परे इस शब-ए-ग़म से आगेइक नई सुब्ह भी है शाम-ए-अलम से आगे
अब शहर-ए-आरज़ू में वो रानाइयाँ कहाँहैं गुल-कदे निढाल बड़ी तेज़ धूप है
इस शोर-ए-तलातुम में कोई किस को पुकारेकानों में यहाँ अपनी सदा तक नहीं आती
कुछ बे-अदबी और शब-ए-वस्ल नहीं कीहाँ यार के रुख़्सार पे रुख़्सार तो रक्खा
उस शान-ए-आजिज़ी के फ़िदा जिस ने 'आरज़ू'हर नाज़ हर ग़ुरूर के क़ाबिल बना दिया
शाहिद रहियो तू ऐ शब-ए-हिज्रझपकी नहीं आँख 'मुसहफ़ी' की
ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त न कर मुझ पर अज़ाबमैं ने तेरा मुँह नहीं काला किया
ऐ शहर-ए-सितम छोड़ के जाते हुए लोगोअब राह में कोई भी मदीना नहीं आता
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़ियादा पाँव फैलाती है क्यूँभर गया जितना हमारी उम्र का पैमाना था
ख़ूबी ओ शान-ए-दिलबरी ग़म्ज़ा-ओ-नाज़ ही नहींहुस्न में वो अदा भी है जिस का नहीं है कोई काम
इस शहर-ए-बे-चराग़ में जाएगी तू कहाँआ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें
क्यूँ गिरफ़्ता-दिल नज़र आती है ऐ शाम-ए-फ़िराक़हम जो तेरे नाज़ उठाने के लिए मौजूद हैं
उम्र का कोह-ए-गिराँ और शब-ओ-रोज़ मिरेये वो पत्थर है जो कटता नहीं आसानी से
इक शम-ए-आरज़ू की हक़ीक़त ही क्या मगरतूफ़ाँ में हम चराग़ जलाए हुए तो हैं
लम्हात-ए-वस्ल याद जो आए शब-ए-फ़िराक़यक-लख़्त सुर्ख़ हो गए आरिज़ बे-इख़्तियार
इस शहर-ए-तमन्ना में क्या छाँव मिले मुझ कोहै धूप के दामन में तपता हुआ घर मेरा
तू इतनी दिल-ज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाएँ हम
इक घर भी सलामत नहीं अब शहर-ए-वफ़ा मेंतू आग लगाने को किधर जाए है प्यारे
तहज़ीब ही बाक़ी है न अब शर्म-ओ-हया कुछकिस दर्जा अब इंसान ये बेबाक हुआ है
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books