aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aabid"
जहाँ पहुँच के क़दम डगमगाए हैं सब केउसी मक़ाम से अब अपना रास्ता होगा
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
सफ़र में ऐसे कई मरहले भी आते हैंहर एक मोड़ पे कुछ लोग छूट जाते हैं
ये क्या पड़ी है तुझे दिल जलों में बैठने कीये उम्र तो है मियाँ दोस्तों में बैठने की
हालात कह रहे हैं कि अब वो न आएँगेउम्मीद कह रही है ज़रा इंतिज़ार कर
अमीर-ए-कारवाँ है तंग हम सेहमारा रास्ता सब से अलग है
जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहेवो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं
ख़मोश रहने की आदत भी मार देती हैतुम्हें ये ज़हर तो अंदर से चाट जाएगा
हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूपऔर ये रात अपनी चादर है
बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँमैं अपने सामने वाली गली में रहता हूँ
ज़माना मुझ से जुदा हो गया ज़माना हुआरहा है अब तो बिछड़ने को मुझ से तू बाक़ी
दम-ए-रुख़्सत वो चुप रहे 'आबिद'आँख में फैलता गया काजल
हज़ार ताने सुनेगा ख़जिल नहीं होगाये वो हुजूम है जो मुश्तइल नहीं होगा
फ़लक से कैसे मिरा ग़म दिखाई देगा तुझेकभी ज़मीन पे आ और ज़मीं से देख मुझे
हम से 'आबिद' अपने रहबर को शिकायत ये रहीआँख मूँदे उन के पीछे चलने वाले हम नहीं
तड़पेंगे तिरी याद में घबराएँगे तन्हाऐ दोस्त किसी तौर न जी पाएँगे तन्हा
जीने का अकेले तो तसव्वुर भी नहीं हैहम तुझ से जुदा होंगे तो मर जाएँगे तन्हा
तिरे हाथों में है तिरी क़िस्मततिरी इज़्ज़त तिरे ही काम से है
जब तक था दम में दम न दबे आसमाँ से हमजब दम निकल गया तो ज़मीं ने दबा लिया
ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी हैदेखिए पहले यहाँ कौन हरा होता है
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