aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aatish-e-namruud"
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
ज़बाँ पे शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-ख़ुदा क्यूँ है?दुआ तो माँगिये 'आतिश' कभी दुआ की तरह
ख़ूगर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार था इतना 'आतिश'दर्द भी माँगा तो पहले से सिवा माँगा था
आतिश-ए-मस्त जो मिल जाए तो पूछूँ उस सेतू ने कैफ़िय्यत उठाई है ख़राबात में क्या
बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ जड़ने से नगों के कम नहींशाइ'री भी काम है 'आतिश' मुरस्सा-साज़ का
कुफ़्र ओ इस्लाम की कुछ क़ैद नहीं ऐ 'आतिश'शैख़ हो या कि बरहमन हो पर इंसाँ होवे
उस बला-ए-जाँ से 'आतिश' देखिए क्यूँकर बनेदिल सिवा शीशे से नाज़ुक दिल से नाज़ुक ख़ू-ए-दोस्त
वही पस्ती ओ बुलंदी है ज़मीं की आतिशवही गर्दिश में शब ओ रोज़ हैं अफ़्लाक हनूज़
ये ताज के साए में ज़र-ओ-सीम के ख़िर्मनक्यूँ आतिश-ए-कश्कोल-ए-गदा से नहीं डरते
लम्हा-ए-इमकान को पहलू बदलते देखनाआतिश-ए-बे-रंग में ख़ुद को पिघलते देखना
क्यूँ मुझ को नज़्र-ए-आतिश-ए-एहसास कर दियाक्यूँ जान डाल कर मिरी मिट्टी ख़राब की
आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम हैजिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं
न पूछ शे'र है क्या चीज़ मुझ से ऐ हमदममिज़ाज-ए-आतिश-ए-सोज़ाँ लताफ़त-ए-शबनम
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमामदहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम
आतिश-ए-इश्क़ में जो जल न मरेंइश्क़ के फ़न में वो अनारी हैं
आतिश-ए-इश्क़ जब जलाती हैजल के मैं नोश-ए-जाम करता हूँ
दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होतेतन्हा नज़र आते हैं ग़म-ए-यार के होते
बढ़ते बढ़ते आतिश-ए-रुख़्सार लौ देने लगीरफ़्ता रफ़्ता कान के मोती शरारे हो गए
आतिश-ए-गुल कोई चिंगारी नहीं शो'ला नहींफूल खिलते हैं तो गुलशन मिरा जलता क्यूँ है
आग पानी भी कभी एक हुए देखे हैंआतिश-ए-ज़ब्त लहू में भी नहीं हल होगी
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