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शेर
तुंदी-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती है तुझे ऊँचा उड़ाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
शेर
दश्त-ए-जुनूँ की ख़ाक उड़ाने वालों की हिम्मत देखो
टूट चुके हैं अंदर से लेकिन मन-मानी बाक़ी है
कुमार पाशी
शेर
मिरे दहन में अगर आप की ज़बाँ होती
तो फिर कुछ और ही उन्वान-ए-दास्ताँ होता
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
दिल-लगी के वास्ते देहली में है मटिया-महल
कौन जावे ख़ाक उड़ाने मुल्क-ए-बीकानेर को
किशन लाल तालिब देहलवी
शेर
हनीफ़ अख़गर
शेर
'शफ़क़' का रंग कितने वालेहाना-पन से बिखरा है
ज़मीं ओ आसमाँ ने मिल के उनवान-ए-सहर लिक्खा