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शेर
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
तुम्हारे हुस्न की शरहें लिखी हैं इन रिसालों में
शाद अज़ीमाबादी
शेर
तकलीफ़ न दे हम को तो गुल-गश्त-ए-चमन की
ख़ुद सीना तिरे दाग़ों से गुलशन है हमारा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
कहाँ रह जाए थक कर रह-नवर्द-ए-ग़म ख़ुदा जाने
हज़ारों मंज़िलें हैं मंज़िल-ए-आराम आने तक
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
रहने दे तकलीफ़-ए-तवज्जोह दिल को है आराम बहुत
हिज्र में तेरी याद बहुत है ग़म में तेरा नाम बहुत