aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ba-KHair"
तेरा ख़याल ख़्वाब ख़्वाब ख़ल्वत-ए-जाँ की आब-ओ-ताबजिस्म-ए-जमील-ओ-नौजवाँ शाम-ब-ख़ैर शब-ब-ख़ैर
यकसाँ कभी किसी की न गुज़री ज़माने मेंयादश-ब-ख़ैर बैठे थे कल आशियाने में
मुद्दत से कोई शब नहीं गुज़री है ख़ैर सेमुद्दत से शब ब-ख़ैर नहीं कह रहा कोई
यक-ब-यक तर्क न करना था मोहब्बत मुझ सेख़ैर जिस तरह से आता था वो आता जाता
गुलों की महफ़िल-ए-रंगीं में ख़ार बन न सकेबहार आई तो हम गुलसिताँ से लौट आए
'ख़ार' उल्फ़त की बात जाने दोज़िंदगी किस को साज़गार आई
हम से कोई तअल्लुक़-ए-ख़ातिर तो है उसेवो यार बा-वफ़ा न सही बेवफ़ा तो है
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआघर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना
हमारी ख़ैर है लेकिन बस इक गुज़ारिश हैहमारे बाद किसी से भी यूँ नहीं करना
जिन बातों को सुनना तक बार-ए-ख़ातिर थाआज उन्हीं बातों से दिल बहलाए हुए हूँ
बे-तरह पड़ती है नज़र उन कीख़ैर दिल की नज़र नहीं आती
शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आजबात तो ख़ूब है मगर आदमी मो'तबर नहीं
हड्डियाँ बाप की गूदे से हुई हैं ख़ालीकम से कम अब तो ये बेटे भी कमाने लग जाएँ
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्तसब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजेआप को हुस्न मुबारक हो मिरा दिल मुझ को
खिलौने की तड़प में ख़ुद खिलौना वो न बन जाएमिरा बच्चा सड़क पर रेज़गारी ले के निकला है
बस एक पल की तमन्ना-ए-वस्ल की ख़ातिरतमाम 'उम्र लगा दी गई सँवरने में
वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर बन गईंहम जहाँ पहुँचे हमारे साथ वीराने गए
हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाहसुब्ह उठ कर ख़ुमार की ख़ातिर
फूल तो क्या ख़ार भी मंज़ूर हैंबे-रुख़ी से यूँ मगर फेंको नहीं
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