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शेर
रात दिन नाक़ूस कहते हैं ब-आवाज़-ए-बुलंद
दैर से बेहतर है काबा गर बुतों में तू नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
शेर
हनीफ़ अख़गर
शेर
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
ठोकरें खा के मिरी आँखों में ख़्वाब आता है
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
बुलंद आवाज़ से घड़ियाल कहता है कि ऐ ग़ाफ़िल
कटी ये भी घड़ी तुझ उम्र से और तू नहीं चेता
नाजी शाकिर
शेर
साअत-ए-ईसवियाँ है कि मिरा दिल जिस में
ख़ुद-ब-ख़ुद चोट लगी ख़ुद-ब-ख़ुद आवाज़ हुई